राजस्थान का दक्षिणी-पूर्वी हाङौती का पठार | Hadoti ka pathar.
राजस्थान के दक्षिण मे हाङौती का पठार स्थित है । यह दक्षिण का पठार भारत के प्रायद्वीपीय (मालवा) पठार का एक भाग है । इसकी उत्पत्ति मध्यजीवी महाकल्प या मीसोजोइक ऐरा के क्रिटेशियस काल मे हुई । इस पठारी प्रदेश का निर्माण ज्वालामुखी प्रक्रिया से हुआ, इसमें लावा मिश्रित शैलो एवं विध्यन शैलों का मिश्रण है । इसकी संरचना मे चूना एवं बालूआ पत्थर पाये जाते है ।
हाङौती के पठार का राजस्थान मे अक्षांशीय विस्तार 23°15' से 25°27' उत्तरी अक्षांश तथा देशांतरिय विस्तार 75°15' से 77°25ʼ पुर्वी देशान्तर है ।
राजस्थान मे यह दक्षिणी-पूर्वी पठार कोटा, बूंदी, बारा, झालवाङ जिलो मे धरातलीय रूप से तथा सवाई माधोपुर, करौली व धौलपुर मे धरातलीय रूप से फैला हुआ है । यह प्रदेश राजस्थान के 9% भू-भाग पर स्थित है जिसमे 12% जनसंख्या निवास करती है ।
समुद्र तल से इस पठारी भाग कि औसत ऊंचाई लगभग 500 मीटर है ।
हाङौती का विभाजन(hadoti ke pathar ka vargikaran)
इसे दो भागो मे विभाजित कीया गया है :-1. विन्ध्यन कंगार भूमि(vindhyayan kangaar bhoomi)
विन्ध्ययन का पठार मुख्य रूप से सवाई माधोपुर, करौली व धौलपुर जिलो मे विस्तारित है । इसकी समुद्र तल से ऊंचाई 350 से 500 मीटर तक है । यह मुख्य रूप से बालूआ पत्थरो से निर्मित पठार है ।2. ढ़क्कन लाव पठार(dhakkan lava pathar)
ढ़क्कन के पठार का दक्षिण व पुर्वी भाग लाव से ढक्का हुआ है । कोटा मे चम्बल, कालीसिंध तथा पार्वती नदी जलोढ़ मैदान निर्मित करती है ।इसे पुनः दो भागो मे विभाजित कीया गया है ।
डंग - गंगधर प्रदेश
झालावाड़ जिले का दक्षिणी-पश्चिमी भाग जो 350 m ऊपर है उसे डंग गंगधर प्रदेश कहते है ।झालावाङ पठार
काली मिट्टी पायी जाती है।राजस्थान के दक्षिणी पूर्वी पठार की विशेषताऐ(rajasthan ke dakshini poorvi pathar ki visheshta)
1.यह सर्वाधिकार नदियाँ वाला क्षेत्र है, इस क्षेत्र कि चम्बल, कालीसिंध व पार्वती प्रमुख नदिया है ।2. इस प्रदेश मे लाल व काली मिट्टी पायी जाती है ।
3 . यहां सर्वाधिकार जल अपरदन होता है ।
4. चुना एवं बलुआ पत्थर प्रचुर मात्रा मे पाये जाते है ।