–>

राजस्थान के लोक नाट्य ।

राजस्थान के लोक नाट्य pdf | rajasthan ke lok natya.

जब लोक जीवन के किसी चर्चित कथा या घटना को रंगमंच पर अभिनय द्वारा प्रस्तुत करना, जिसमे कलाकार कहानी के अनुसार अभिनय करते है को लोकनाट्य(natya) कहते है । अर्थात रंगमंच पर कीसी कथा या कहानी को प्रस्तुत करना नाटक कहलाता है
राजस्थान के लोक नाट्य



राजस्थान के लोक नाट्यो मे प्रमुख ख्याल, नौटंकी, रम्मत, तमासा, स्वांग, लीलाऐ, बहरूपिया कला शामिल है ।

ख्याल 

ख्याल संगीत प्रधान लोकनाट्य है, इसमे कथानाक पधपद रचनाओं के रूप मे गा-गाकर प्रस्तुत करता है । मनरंग को ख्याल गायकी का प्रवर्तक माना जाता है ।

  • कुचामनी ख्याल

कुचामनी ख्याल मे लोकगीतों की प्रधानता होती है । इस ख्याल मे पुरूष कलाकार ही महिलाओं का अभिनय करते है । उगमराज इस ख्याल के प्रसिद्ध कलाकार है । इस ख्याल के प्रवर्तक लच्छीराम जी माने जाते है । लच्छीराम जी ने मीरा मंगल, राव रिङमल, गोगा चौहान आदि ख्यालो की रचना है । इन्होने कुल 25 ख्याल लिखी ।
कुचामनी ख्याल मे तीन पात्र होते है :-
1. राजा 2. रानी 3. जोकर
इस ख्याल का सबसे महत्वपूर्ण पात्र रानी है ।

  • जयपरी ख्याल 

जयपुरी ख्याल रूढ़ीवादीता से प्रभावित नही है । इसका मुख्य विषय धार्मिकता है । इस ख्याल मे महिला पात्रो की भूमिका महिलाएं ही निभाती है । जोगी-जोगन, कान्हा-गुजरी, भिया-बीबी इस शैली के  मुख्य ख्याल है ।

  • तुर्रा कलंगी ख्याल

मेवाङ के शाह अली और तुकनगीर नामक दो मुस्लिम संतो ने इस ख्याल की रचना की । इसे माच का ख्याल भी कहा जाता है । इस ख्याल मे तुर्रा को महादेव व कलंगी को पार्वती का अवतार माना जाता है ।
यह ख्याल गोसुण्डा, निम्बाहेड़ा व चितौङ मे लोकप्रिय है । इसका प्रारम्भ दो दलो मे सवाल जबाब से होता है ।
यह एक गैर व्यवसायिक ख्याल है । 
जयदयाल सोनी व महबुब खां

  • सिङाव की ख्याल

सिङाव की ख्याल के रचनाकार व मुख्य कलाकार नानू राम जी है । इनके शिष्य दुलिया राणा ने इसे लोक प्रिय बनाया ।
नानूराम ने हरिचन्द्र, भर्तहन्ता, जयदेव कलाली ढोला मारवाण, हीरा रांझा आदि ख्यालों की रचना की ।

  • हैला ख्याल

हैला ख्याल के परवर्त हैला शायर माने जाते है । इस ख्याल की विशेषता है कि इसमे लम्बी टेर मे आवाज दी जाती है । यह सवाई माधोपुर दौसा, करौली मे लोकप्रिय है । लाल सोट (दौसा ) की हैला ख्याल सर्वाधिक लोकप्रिय है ।

  • कन्हैया ख्याल

कन्हैया ख्याल सवाई माधोपुर, भरतपुर, करौली व धौलपुर की प्रसिद्ध है।

  • अली बक्शी ख्याल

इस ख्याल के जन्मदाता अलवर के मुण्डावर ठिकाने के राजा अलीबख्श को माना जाता है। यह ख्याल अलवर मे प्रसिद्ध है। 
अलीबक्श को अलवर का रसखान कहा जाता है ।

अन्य प्रसिद्धि ख्याल

ढप्पाली ख्याल:- अलवर, भरतपुर मे प्रसिद्ध है। 
डोडिया ख्याल:- हाङौती क्षेत्र मे लोकप्रिय 
किशनगढ़ी ख्याल:- बंशीधर शर्मा ने लोकप्रिय बनाया
नागौरी ख्याल:- बलदेवजी इसके प्रवर्तक है ।

  • रम्मत

रम्मत का शाब्दिक अर्थ "खेलना" होता है । रम्मत मे शामिल होने वाले खिलाङीयो अथवा पात्रो को खेलर या रमतियो कहा जाता है । रम्मत का उद्गम स्थल जैसलमेर माना जाता है । 
रम्मत स्थल को अखाङा कहा जाता है ।

जैसलमेर की रम्मत

जैसलमेर की रम्मत बसंत पंचमी से लगाकर अक्षय तृतीया तक आयोजित होती है ।

  • स्वतंत्र बावनी

यह सर्वाधिक लोकप्रिय रम्मत है ।
इस रम्मत की रचना जैसलमेर के तेजकवि ने 1943 मे की । इन्होंने इसे महात्मा गांधी को भेट की थी ।
तेज कवि ने जैसलेर मे तेज अखाङे का प्रारंभ कीया ।

  • हैडाऊ रम्मत

इसके प्रवर्तक जवाहरजी पुरोहित है । इसमे आदर्श पति-पत्नी को प्रदर्शित कीया जाता है ।
अमर सिंह री रम्मत
यह राष्ट्रीय भावनाओं से प्रेरित रम्मत है ।

  • रावलो की रम्मत

इस रम्मत मे विभिन्न प्रकार के स्वांग रचे जाते है । यह मुख्यतः मारवाङ क्षेत्र मे फाल्गुन व चैत्र मास मे आयोजित होती है ।
इसमे नौबत वाद्य का प्रयोग कीया जाता है ।
राजस्थान के लोक नाट्य

  • तमासा

महाराष्ट्र की तमासा कला शैली से महाराणा प्रताप सिंह के काल मे इस हास्य पद लोक नाट्य का प्रारंभ हुआ ।
प्रताप सिंह ने तमासा कला प्रमुख कलाकार बंशीधर भट्ट को आश्रय दिया । बंशीधर भट्ट इस तमाशा कला के प्रवर्तक है ।
धमाका मंजरी के प्रदर्शन से तमाशा की शुरुआत होती है । तमासा लोकनाट्य दिन मे प्रदर्शित होता है ।
तमाशा कला मे उस्ताद परम्परा फुल जी भट्ट ने प्रारम्भ की ।
यह लोक नाट्य जयपुर व मेवात क्षेत्र मे आयोजित किया जाता है ।

तमाशा लोकनाट्य के कलाकार

बंशीधर भट्ट, वृजपाल, वासुदेव, गौहराजान(महिला कलाकार)

प्रमुख तमाशा लोकनाट्य

झुटन मिया तमाशा
शीतला अष्टमी के दिन आयोजित 
हीर-राझां तमाशा
धुलण्डी के दिन
जोगी-जोगन तमाश
होले के दिन आयोजित
गोपीचंद का तमाशा
चैत्र अमावस्या को आयोजित
गुड्डू भाई तमाशा
कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया(भाई दूज) को आयोजित ।

  • नौटंकी

उत्तर प्रदेश की हाथरसी शैली से प्रभावित नोटंकी राजस्थान मे भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर,  अलवर, श्रीगंगानगर मे प्रचलित है ।
इसमे नौ प्रकार के वाद्य यंत्र बजाये जाते है ।

  • गवरी लोक नाट्य

गवरी राजस्थान का सबसे प्राचीनतम लोक नाट्य है । यह नाट्य शिव तथा भस्मा-सुर की कथा पर आथारित है । गवरी नाट्य को केवल भील जनजाति के लोग ही करते है ।
यह रक्षा बंधन के दूसरे दिन से शुरू होकर 40 दिन तक चलता है । इसमे चार पात्र देव, दानव, मानव तथा पशु होते है । इस नाट्य का महानायक एक वृद्ध व्यक्ति होता है उसे बुङिया(बुढ़िया) कहते है । इसमे दो राइया होती है जो पार्वती की प्रतीक है ।
गवरी लोक नाट्य मे मांदल व थाली लोक नाट्य का प्रयोग किया जाता है।
गवरी लोक नाट्य

राजस्थान मे लीलाओं के रूप

  • रामलिला

रामायण कथा का रंगमंच पर प्रदर्शित करना रामलिला है । तुलसीदास जी ने इसका प्रारम्भ किया । राजस्थान मे बिसाऊ(झुन्झुनूं), जूरहरा(भरतपुर), पाटूदा(कोटा) की रामलिलाऐं प्रसिद्ध है। 

  • राभत

यह रामलिला से मिलता जुलता रूप है । इसमे राम के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का प्रदर्शन होता है ।
राभत का प्रदर्शन रावल करते है तथा दर्शक के रूप मे चारण का होन आवश्यक माना जाता है ।
ढाई कङी के दोहों की रामलीला
यह अटरू बारा की प्रसिद्ध है। 

  • धनुष लीला

भांगरोल बारा मे आयोजित होती है। 

  • रासलिला

यह भगवान श्री कृष्ण के जीवन लीला पर आधारित है । यह फुलेरा जयपुर की प्रसिद्ध है।

  • रासधारी

कृष्ण लीलाओं को गीतो के साथ चौक- चौराऔं पर प्रदर्शित करना रासधारी है । यह मेवाङ क्षेत्र मे प्रचलित है । इसके प्रवर्तक मोतीलाल जाट है ।

  • रासमण्डल

श्री कृष्ण को घघरी व घुंघरू पहनाकर रंगमच पर प्रदर्शित किया जाता है । यह वागङ क्षेत्र मे लोकप्रिय है।  रासमण्डल के प्रवर्तक औनाङ सिंह माने जाते है ।

  • गौर लीला

आबू क्षेत्र मे गरासिया जनजाति के लोगो द्वारा गणगौर पर गौर लीला करते है ।
Rajasthan ke lok natya

  • बहरूपिया कला

बहुरुपिया कला भीलवाङ मे प्रसिद्ध है । इसे जानकी लाल भाण्ड ने लंदन मे प्रस्तुत किया । जानकी भाण्ड इस कला के जनक है । 
जानकी भाण्ड के पुत्र लादूराम भाण्ड को राजस्थान मंकी मैन कहा जाता है ।
जानकी भाण्ड को राजस्थान का मंकी मैन कहा जाता है
–>