राजस्थानी भाषा एवं बोलियाँ (rajasthan bhasa avem boliya)
राजस्थानी भाषा, राजस्थान की मातृ भाषा है । इस भाषा की उत्पत्ति 1150 ई. (12 वीं सदी ) मे हुई । राजस्थान की राज्य भाषा हिन्दी है । राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति के बारे मे अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग मत दिए, जिसमे शौरसैनी अपभ्रंश का मत सर्व मान्य है । भारत के संविधान मे भाषाओं का उल्लेख 8वीं अनुसूची मे है । जिसमे वर्तमान मे कुल 22 भाषाएं शामिल है । राजस्थानी भाषा का उल्लेख इस भाषा मे नहीं है।
विश्व मे सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा चीनी है । तथा विश्व मे सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा मे राजस्थानी का 16वां स्थान तथा भारत मे 7 वां स्थान है ।
राजस्थानी भाषा सामान्य जानकारी
- राजस्थान भाषा दिवस 21 फरवरी को मनाया जाता है।
- राजस्थान मे सर्वाधिकार क्षेत्र मे मारवाड़ी बोली जाती है ।
- राजस्थानी भाषा की लिपी महाजनी या मंडिया या बनीयावली है ।राजस्थानी भाषा बनियों द्वारा लिखे जाने वाले हिसाब किताब की तरह लिखी जाती है इसलिए इसकी लिपी को बनियावणी लिपी कहते है ।
- राजस्थानी भाषा को मरूवाणी भी कहा जाता है।
- इसका स्वर्ण काल 17वीं से 19वीं सदी मे माना जाता है।
- राजस्थानी भाषा के लिए मारवाङी शब्द का प्रयोग सबसे पहले अबुल फजल ने आइने अकबरे मे किया।
- इस भाषा का सर्वप्रथम वैज्ञानिक अध्ययन जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने 1912 मे किया इनकी पुस्तक का नाम दा लेगवेस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया है ।
राजस्थानी भाषा का विकास
राजस्थानी भाषा के विकास के चार चरण है :-प्रथम चरण:- 11 वीं से 13 वीं सदी
द्वितीय चरण:- 13वीं से 16वीं सदी
तृतीय चरण:- 16वीं से 18 वीं सदी
चतुर्थ चरण:- 18 वीं सदी से अब तक
राजस्थान भाषा की उत्पत्ति
राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति के सम्बन्ध मे निम्न मत दिए गए हैं:-1. शौरसेनी अपभ्रंश
महावीर प्रशाद शर्मा व L.P टेस्सीटोरी के अनुसार राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति शौरसेनी भाषा से हुई है ।यह मत सर्व मान्य है ।
2. नागर अपभ्रंश
जाॅर्ज अब्राहम ग्रियर्सन व पुरोषोत्तम लाल मेनारिया ने राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति नागर अपभ्रंश से मानी है ।3. सौराष्ट्री अपभ्रंश
सुनीता कुमार चटर्जी के अनुसार4. गुर्जरी अपभ्रंश के अनुसार
मोतीलाल मेनारिया व K.M मुंशी के अनुसारअपभ्रंश
कीसी भी वस्तु या भाषा का टुटा-फुटा रूप/भाग अपभ्रंश कहलाता है ।
राजस्थानी भाषा का वर्गीकरण
राजस्थानी भाषा का निम्नानुसार वर्गीकरण कीया गया है ।ग्रियर्सन के अनुसार राजस्थानी भाषा का वर्गीरण
ग्रियर्सन ने राजस्थानी भाषा को पांच भागों मे वर्गीकृत किया है ।
1. पश्चिमी राजस्थानी मारवाड़ी
यह बोली मारवाड़, मेवाङ, सिंध, बीकानेर, जैसलमेर एवं पंजाब के सीमावर्ती क्षेत्रों मे बोली जाती है । इसे पुनः निम्न भागों मे बांटा गया है ।उत्तरी मारवाड़ी
बीकानेर, शेखावाटी, बागङी बोली उत्तरी मारवाङी मे आती है ।पृथ्वीराज राठौङ के ग्रन्थ बेलि क्रिसण रुक्मणी री वचनीका ग्रन्थ उत्तरी मारवाङी मे लिखा गया है ।
दक्षिण मारवाड़ी
मारवाङी, गुजराती, सिरोही, गोङवाटी, देवङावाटी आदि दक्षिणी मारवाड़ी की बोलियाँ है, तथा यह दक्षिण मारवाड़ मे बोली जाती है।पूर्वी मारवाड़ी
मारवाड़ी व मेवाङी बोलियाँ आती है ।राजिया रा सोरठा पुर्वी मारवाड़ी मे लिखे गए हैं।
पश्चिमी मारवाङी
थली व घटकी बोली इसमे आती है ।
2.उत्तर-पूर्वी राजस्थानी
यह बोलो मुख्य रूप से अलवर एवं भरतपुर मे बोली जाती है ।यह हिन्दी के समान बोली है ।
मध्य पूर्वी राजस्थानी
यह ढुढाङ क्षेत्र मे बोली जाने वाली भाषा है । तोरावाटी राजावाटी, कठैला, अजमेरी, किशनगढ़ी, चौरासी, हाङोती, नागर चौल इस बोली की उप बोलिया है ।दक्षिणी पूर्वी राजस्थानी
यह मालवा तथा मेवाङ क्षेत्र मे बोली जाती है । मालवी रागङी आदि इसकी उपबोलिया है ।दक्षिण राजस्थानी
यह मुख्यतः भीलों की बोली है निमाङी इसकी उपबोली है ।डाॅ. L.P टेस्टी के अनुसार राजस्थानी भाषा का वर्गीकरण
राजस्थानी भाषा को निम्न भागो मे बाँटा गया है ।
1. पश्चिमी राजस्थानी
पश्चिमी राजस्थानी का साहित्यक रूप डिंगल है जो चारणों ने लिखा था ।मारवाङी
ये पश्चिमी राजस्थान मे बोली जाने वाली भाषा है । इस बोली की उत्पत्ति गुर्जरी अपभ्रंश से मानी जाती है। यह जोधपुर, बीकानेर, बाङमेर, पाली, जैसलमेर, जालौर एवं सिरोही मे बोली जाती है ।यह राजस्थान मे सबसे ज्यादा क्षेत्र मे बोली जाने वाली उप बोली है ।
मेवाङी
मेवाङी उदयपुर, राजसमन्द, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, प्रतापगढ़, आदि क्षेत्रों मे बोली जाने वाली बोली है ।कुम्भा का साहित्य व कीर्ती स्तंभ प्रशस्ति इसी बोली मे है ।
यह राजस्थान की दुसरी सबसे बङी बोली है ।
वागङी
यह डूंगरपुर, सिरोही, उदयपुर मे मुख्य रूप से बोली जाती है। इस पर गुजराती भाषा का प्रभाव पङा है । ग्रियर्सन ने इसे भीलों की बोली माना है ।देवङावाटी
यह आबू क्षेत्र मे बोली जाती है।बीकानेरी
यह बीकानेर मे बोली जाती है ।
शेखावाटी
शेखावाटी बोली शेखावाटी क्षेत्र सीकर, झुन्झुनूं, चुरू मे बोली जाती है ।थली
थली बीकानेर, चुरू तथा श्रीगंगानगर मे बोली जाती है ।नागौरी
नागौर क्षेत्र की बोली है ।ढटकी
यह जैसलमेर, जोधपुर तथा बीकानेर क्षेत्र की भाषा है ।गोङवाडी
यह बाङमेर व जालौर मे बोली जाती है ।
नरपती नाल्ह व बिसलदेव रासौ ग्रन्थ इसी बोली मे है ।
धावङी
यह उदरपुर की उप बोली है ।खेराङी
यह शाहपुर, बुंदी तथा टोंक आदि क्षेत्रों मे बोली जाने वाली उपबोली है ।टोंक, बूंदी तथा भीलवाङा के सीमावर्ती क्षेत्र को खैराङ कहते है ।
(2) पूर्वी राजस्थानी
इसका साहित्यक रूप पिंगल है ।ढूॅढ़ाङी
यह पूर्वी राजस्थान की मुख्य बोली है । इस भाषा पर गुजराती, मारवाड़ी व ब्रजबोली का प्रभाव है । यह जयपुर, सवाई माधोपुर, अजमेर, दौसा, मे बोली जाने वाली भाषा है ।सन्त दादू दयाल जी का साहित्य इसी ढूढाङी बोली मे है ।
राजावाटी
यह जयपुर जिले के पूर्वी भाग व दौसा के पश्चिमी भाग मे बोली जाने वाली भाषा है।तोरावाटी
तोरावाटी भाषा तोरावटी क्षेत्र मे बोली जाती है (कातंली नदी का बहाव क्षेत्र तोरावाटी कहलाता है) मुख्य रूप से यह झुन्झुनूं, सीकर व जयपुर के पूर्वी भाग मे यह भाषा बोली जाती है।नागर चाल
यह टोंक के दक्षिण व सवाई माधोपुर के पश्चिमी मे बोलीं जाने वाली भाषा है ।चौरासी
जयपुर के दक्षिण-पूर्वी भाग तथा टोंक के पश्चिमी मे चौराची बोली, बोली जाती है ।कठेङी
जयपुर के दक्षिण व टोंक मे बोली जाती है ।हाड़ौती
वर्तनी की दृष्टि से सबसे कठिन मानी जानी वाली हाङौती बोली कोटा, बूंदी, झालावाड़ एवं बारा मे बोली जाती है । इस पर मारवाङी व गुजराती भाषा का प्रभाव देखने को मिलता है।अजमेरी
अजमेर मे बोली जाती है ।किशनगढ़ी
किशनगढी बोली किशनगढ़ मे बोली जाती है ।ब्रज
यह धौलपुर मे बोली जाती है ।मेवाती
यह अलवर जिले मे बोली जाती हो है । इसके अलावा यह मथुरा मे बोली भी बोली जाती है ।इसमे लू शब्द का सर्वाधिक प्रयोग हुआ है ।
लाल दास जी तथा चारण दास जी का साहित्य इसी बोली मे लिखा गया है ।
रागङी
यह मालवी व मारवाङी का मिश्रित रूप है । इस बोली मे "स" को "ह" बोला जाता है।अहीरवाटी
यह यादवों की बोली है ।इसे अलवर के बहरोङ, बानसूर,मुडांवर तथा जयपुर के कोटपुतली मे बोला जाता है ।
जगरौती
जगरौती करौली मे बोली जाती है। इसमे "न" को "ण" बोलते है ।हम्मीर रासो ग्रन्थ जगरौती बोली मे है ।
राजस्थानी भाषा के साहित्यिक रूप
राजस्थानी भाषा के दो साहित्य रूप है ।
1. डिंगल
2. पीगल
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